top of page

पिता......

  • Writer: sumit singh
    sumit singh
  • Dec 28, 2017
  • 1 min read

अनजान था, अग्यान था

रक्त से लतपत हुआ

मां की कोख से, अभी जन्मा ही था

बिलखता हुआ, सांसों को भरता हुआ

संसार में, अभी पुकार लगाया हीं था

थाम उसने, जब लगाया सीने से अपने

वो पिता हीं था, जिसकी ऊंगली मैंने थाम रखी थी

वक्त बीता, उसकी सांसें बिकी

पैरों के छालों से उसके, मेरे जीवन की राह बनी

संसार के बाजार में, शरीर की लागत से अपने

मेरे सूने चौखट पे, खिलौने-खुशीयों की दुकान लगा दी

वो छांव है, आधार भी है

विपद में जो, तलवार और ढाल भी है

वो ना परिभाषित है, ना क्षणों में मुझसे विभाजित है

मैं जो हूं, जीतना भी हूं

अनजान हूं, अग्यानी भी हूं

पिता का हूं, पिता का हूं ।


 
 
 

Comments


Join our mailing list

  • Facebook Social Icon
  • Instagram Social Icon

© 2023 by The Mountain Man. Proudly created with Wix.com

bottom of page